कुछ कुछ ही समझ आती
बाकी सब out of syllabus है
जात- पात , राग- द्वेष
बात - बात पे कलेष,
मूल रूप में आ जाओ सारे
जिसने भी बदला है भेष,
ये खेल मुझको लगता
इनको लगती है ये रेस,
हम तो होले - होले चलते
इनको करना पड़ता चेज,
अपनी पूरी है किताब
इनके इक्के - दुग्गे पेज,
कुछ यहां चापलूसी करते
हम करते है सीधा पेश,
अपने जो भी ही संदेश,
आज गिनती के चार सुनते
कल सुनेगा पूरा देश,
बातें तुम्हारी मेरे ऊपर से जाती
कुछ कुछ ही समझ आती
बाकी सब out of syllabus है
यहां फैसला भी मेरा है,अदालत भी मेरी
तेरी नहीं लगती, इजाजत भी मेरी
यहां नहीं चलने वाली तेरी,
खुद ही हम खुद के हैं बेरी,
खुद ही करते हेरा - फेरी ,
जल्दी के चक्कर में देरी ,
मेरे पाठ्यक्रम में बातें गहरी,
मैं पहाड़ी तुम हो शहरी ,
दूध का धुला है तू ओर
गलती दिखती सारी मेरी,
मीठे नहीं , चुभते हैं कड़वे वचन
क्यों ना होते हैं हज़म,
तेरी छमता तो मुझसे भी कम,
मोल - भाव वाला है तू ,
आके तोल मेरे शब्दों का वजन
बातें तुम्हारी मेरे ऊपर से जाती
कुछ कुछ ही समझ आती
बाकी सब out of syllabus है
Noopuki99